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यह गुंडागिर्दी कब बंद होगी?

खट्ठा-मीठा
खट्ठा-मीठा
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आजकल समूचा उत्तर प्रदेश सपा कार्यकर्ताओं/नेताओं की गुन्डा गिर्दी से बुरी तरह त्रस्त है. ऊपर दिए गए चित्र में आज के ही नवभारत टाइम्स में छपे हुए समाचार को दिखाया गया है. यह पहला या अकेला समाचार नहीं है. लगभग ऐसे ही समाचार प्रतिदिन ही छपते रहते हैं. बेचारा आम नागरिक इनको पढ़कर सहम जाता है और सपा को शासन सोंपने की अपनी गलती पर पछताता है.
यह बात नहीं है कि सपा के नेताओं को इसका अहसास न हो. अनेक बार स्वयं मुलायम सिंह यादव अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को इसके लिए डांट चुके हैं, चेता चुके हैं, पर उन पर कोई असर होता हुआ दिखाई नहीं देता. आजकल सपा कार्यकर्त्ता इतने निरंकुश हो गए हैं कि वे पुलिस और कानून को अपने जूतों की नोंक पर रखते हैं. वे कब किसकी इज्जत उतार दें, कुछ नहीं कहा जा सकता. उनके डर से पुलिस वाले पीड़ितों की रिपोर्ट भी नहीं लिख रहे हैं और उसे पुचकारकर या डरा-धमकाकर भगा दे रहे हैं.
अभी कुछ दिन पहले सपा के कार्यकर्ताओं ने एक राष्ट्रीय स्तर के हाकी खिलाड़ी की इज्जत उतार दी, जो इटावा में एक कंपनी में अफसर हैं. उनकी रिपोर्ट भी बड़ी मुश्किल से कई दिनों बाद लिखी जा सकी है, वह भी आधी अधूरी. इस घटना के बाद अनेक अफसर इटावा छोड़ने की बात करने लगे हैं.
हाइवे पर स्थित टोल प्लाजाओं पर मारपीट करना तो आम बात हो गयी है. उसके कुछ समाचार छपते हैं, बाकी दबा दिए जाते हैं. सपा नेताओं को इस बात की पूरी जानकारी है कि आज आम नागरिक सपा को वोट देने के लिए स्वयं को कोसता है और भविष्य में कभी सपा को वोट न देने की कसमें खाता है. पर ऐसी कसमें तो प्रदेश की जनता कई बार खा चुकी है.
राजनीति पर नज़र रखने वालों को याद होगा कि १९९८ के चुनावों के समय एक टेलीविजन बहस में बसपा नेता मायावती और सपा के तत्कालीन प्रदेशाध्यक्ष स्व. राम शरण दास ने खुलेआम एक दुसरे को गुंडा और गुंडी बताया था. इतना स्पष्ट परिचय होते हुए भी दोनों पार्टियों को उस चुनाव में क्रमशः 28% और 29% वोट मिले थे. इसका तात्पर्य है कि प्रदेश की 57% जनता ने गुंडागिर्दी के पक्ष में वोट दिया था. अभी तक जनता जनार्दन की उसी इच्छा का पालन हो रहा है.
यह स्थिति कब बदलेगी कोई नहीं कह सकता.

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