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आआपा में बँटने लगी जूतियों में दाल

खट्ठा-मीठा
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आज आआपा के एक विधायक विनोद कुमार बिन्नी ने अपनी खुली प्रेस कांफ्रेंस में आआपा के सर्वेसर्वा केजरीवाल पर तानाशाही और झूठ बोलने के जोरदार आरोप लगाए हैं. उधर आआपा ने बिन्नी के आरोपों को यह कहकर ख़ारिज कर दिया है कि वे बहुत महत्वकांक्षी हैं और पहले मंत्रिपद तथा अब लोकसभा टिकट मांग रहे थे, जिसके न मिलने पर ये आरोप लगा रहे हैं.

भले ही आआपा की बात में दम हो, लेकिन बिन्नी के इन आरोपों को केवल इसलिए ख़ारिज नहीं किया जा सकता कि वे लोकसभा टिकट या मंत्री पद न मिलने से नाराज हैं. इस आरोपों में कई बेहद गंभीर हैं और यदि उनमें जरा भी सच्चाई है, जो कि साफ़ नज़र आ रही है, तो आआपा नेतृत्व को शर्म से डूब मरना चाहिए.

बिन्नी का पहला आरोप यह है कि केजरीवाल अपने वायदों को या तो पूरा नहीं कर रहे हैं या आधा-अधुरा करके लोगों को मूर्ख बना रहे हैं. जैसे ७०० लीटर पानी मुफ्त देना, बिजली आधी दरों पर देना, जन लोकपाल बनाना आदि. यह बिल्कुल सत्य है कि केजरीवाल ने इस वायदों को पूरा करने के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाने की कोशिश की है.

दूसरा गंभीर आरोप भ्रष्टाचार के विरुद्ध कुछ न करना है, जो कि आआपा का प्रमुख मुद्दा था और है. चुनाव से पहले केजरीवाल ने दावा किया था कि उनके पास शीला दीक्षित के भ्रष्टाचार के बारे में ३७० पेज के सबूत हैं. लेकिन जब से उनकी सरकार (कांग्रेस के खुले समर्थन से) बनी है, तब से उनमें से एक भी पेज कहीं दिखाई नहीं दे रहा है और वे उलटे भाजपा नेताओं से सबूत मांग रहे हैं.

यह तो बेशर्मी की पराकाष्ठा है. उस पर तुर्रा यह कि वे आज भी यह दम भर रहे हैं कि हम हर किसी के भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करेंगे. क्या वे दिल्ली या देश की जनता को मूर्ख समझते हैं? अगर उनके पास सबूत नहीं थे, तो झूठ क्यों बोला? और अगर सबूत थे, तो वे कहाँ गए? इस पर बिन्नी के इस आरोप में दम लगता है कि वे शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित के हम प्याला-हम निवाला बन गए हैं.

बिन्नी के आरोप चाहे सही हों या नहीं, लेकिन यह सिद्ध हो गया है कि यह आआपा वास्तव में कांग्रेस का मुखौटा है और उसके अलावा कुछ नहीं. यह बात कई विचारक बहुत पहले से कहते रहे हैं, हालाँकि लोगों ने इस पर विश्वास नहीं किया. अब आआपा को वोट देने वाले जरूर पछता रहे होंगे.

अब यह एकदम स्पष्ट हो गया है कि आआपा कोई पार्टी नहीं है, बल्कि सत्ता के भूखे नौटंकीबाजों का जमघट मात्र है. इसमें जूतियों में दाल और मोजों में चावल बंटने शुरू हो गए हैं. अभी आगे और भी नाटक देखने को मिलेंगे.

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