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खट्ठा-मीठा : गोवा धामे सागर तीरे

खट्ठा-मीठा
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श्री सूतजी बोले- ‘हे अट्ठासी हजार सेकूलर ऋषियो, सुनो। मैं तुम्हें भवसागर पार कराने वाली महातेजपाल ऋषि की कथा सुनाता हूँ, सो ध्यान देकर कान लगाकर सुनो।’

‘घोर कलयुग में जम्बू द्वीप के इंडिया नामक देश की दिल्ली नगरी में सेकूलर सम्प्रदाय के एक महान् ऋषि रहा करते थे, जिनका नाम महातेजपाल था। वे अपने ‘हल्ला-गुल्ला’ नामक वेबसाइट रूपी आश्रम में पूरे मनोयोग से सेकूलर साधना किया करते थे। उनके चेले और चेलियों की एक लम्बी-चौड़ी जमात थी, जो उनसे साधना के हथकंडे सीखा करते थे और साधना में उनका सहयोग किया करते थे।’

‘उन दिनों एक स्थायी नियम यह था कि साल में एक बार गोवा धाम में सेकूलर चिन्तन शिविर आयोजित किया जाता था। चिन्तन के लिए गोवा धाम का चयन अनायास ही नहीं किया गया था, बल्कि इसके पीछे भी एक गुप्त सेकूलर रहस्य था। गोवा धाम में सागर के तट पर धूप सेंकती निर्वस्त्रा नवयौवनाओं के बीच कुछ ज्यादा ही गहराई से सेकूलर चिन्तन हुआ करता था। इसलिए वे बिना नागा अपनी चुनी हुई चेलियों के साथ इस शिविर में उत्साहपूर्वक शामिल होते थे और आगे की सेकूलर साधना के लिए मार्गदर्शन प्राप्त करते थे। उनके अलावा भी सेकूलर सम्प्रदाय के अनेक छँटे हुए ऋषि-मुनि इस शिविर में पधारते थे और सेकूलर चिन्तन लाभ प्राप्त करते थे। सभी ऋषि-मुनि वहाँ किसी पंचतारा होटल रूपी पर्णकुटी में निवास किया करते थे।’

‘एक बार ऐसे ही एक शिविर में ऋषि महातेजपाल एक कन्या के साथ गये। वहाँ उनका चिन्तन-सत्संग सफलतापूर्वक चल रहा था कि एक दिन चिन्तन के साथ ही विदेशी सोमरस के प्रभाव में उन्होंने होटल के गलियारे में ही अपनी चेली के साथ सेकूलर चिन्तन प्रारम्भ कर दिया। होटल में लगे हुए त्रिकालदर्शी कैमरों ने उनको यह चिन्तन करते हुए देख लिया और उस कन्या ने भी सरेआम चिन्तन करने पर आपत्ति प्रकट की।’

‘लेकिन ऋषि महातेजपाल तो चिन्तन करने का निश्चय करके ही आये थे। इसलिए अगले दिन उन्होंने फिर होटल में उस कन्या के साथ चिन्तन करना शुरू कर दिया। त्रिकालदर्शी कैमरों ने फिर इस चिन्तन को देख लिया और इस बार कन्या ने चिन्तन शिविर से जाकर उनके चिन्तन की पोल खोलने का निश्चय कर लिया।’

‘यह निश्चय प्रकट होते ही ऋषि महातेजपाल के सिर से विदेशी सोमरस के साथ ही चिन्तन शिविर का भूत भी उतर गया। उन्होंने चिन्तन पर धूल डालकर रफा-दफा करने की कोशिश चालू कर दी। उनके शिविर और आश्रम के दूसरे चेले-चेलियों का भी इस कार्य में उनको सहयोग मिला। लेकिन उनकी यह कोशिश विफल रही, क्योंकि तब तक यह बात सोशियल मीडिया आश्रम में पहुँच गयी थी और उस आश्रम के साधकों ने सेकूलर सम्प्रदाय के चिन्तन को बीच चौराहे पर निर्वस्त्र करने का निश्चय कर लिया था।’

‘हे सेकूलर ऋषियो, कथा का सारांश यह है कि इस सेकूलर चिन्तन पर अभी भी सारे संसार में गहरा चिन्तन किया जा रहा है और ऋषि महातेजपाल को कृष्ण जन्मस्थली नामक महाचिन्तन शिविर में भेजने पर विचार किया जा रहा है, ताकि वे जल्दी सेकूलर भवसागर से मुक्त हो जायें।’

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