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हिन्दी ब्लॉगिंग हिन्दी का मान बढ़ाने में सहायक होगी या नहीं? (Contest)

खट्ठा-मीठा
खट्ठा-मीठा
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किसी भी भाषा का मान उसके उपयोग करने वालों की अधिक संख्या होने से बढ़ता है। यही बात हिन्दी के लिए भी कही जा सकती है। हमारे देश में हिन्दी को जानने, समझने और बोलने वालों की संख्या किसी भी अन्य भाषा को जानने, समझने और बोलने वालों की संख्या से बहुत अधिक है। इसीलिए हिन्दी को राष्ट्रभाषा और राजभाषा का सम्मान मिला है।
किसी भाषा को सम्मान उसके साहित्य के आधार पर भी मिलता है। जिस भाषा में अच्छा साहित्य लिखा जाता है और अधिक मात्रा में लिखा जाता है, स्वाभाविक ही उसको अधिक सम्मान दिया जाता है। यह बात संस्कृत, बंगला और तमिल के बारे में सत्य है। हालांकि इन भाषाओं को जानने, समझने और बोलने वालों की संख्या अन्य भाषाओं की तुलना में कम है, लेकिन इनमें जो विपुल उच्च कोटि का साहित्य उपलब्ध है, उससे कारण इन भाषाओं का भारी सम्मान है। हिन्दी भाषा में भी बहुत अधिक और अच्छा साहित्य रचा गया है और रचा जा रहा है। इसलिए साहित्यिक भाषा के रूप में भी हिन्दी को बहुत सम्मानजनक स्थान प्राप्त है।
ब्लॉग लेखन भी साहित्य का एक नया रूप है। ब्लॉगिंग की दुनिया में हिन्दी ब्लॉगिंग ने कम समय में ही अपना प्रमुख स्थान बना लिया है। हिन्दी में ब्लॉग लेखकों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ रही है और इसके साथ ही उनको पढ़ने वालों तथा उन पर टिप्पणी करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। इसी कारण हिन्दी का सम्मान भी बढ़ रहा है, क्योंकि अब हिन्दी केवल बम्बइया फिल्मों की भाषा नहीं रही, बल्कि गम्भीर विचार विमर्श की भाषा बन गयी है।
बम्बइया फिल्मों ने हालांकि हिन्दी को पूरे भारत में फैला दिया और हिन्दी फिल्मों के कारण ही अब देश के अधिकांश लोग हिन्दी बोलने और समझने लगे हैं, लेकिन इन फिल्मों ने हिन्दी भाषा को कुछ हद तक विकृत भी किया है, क्योंकि उसके संवादों में हिन्दी के अतिरिक्त अन्य कई भाषाओं के शब्द ही नहीं अनेक बोलियाँ और शैलियाँ तक डाल दी जाती हैं। इस कारण मानक हिन्दी, जिसे घटिया शाब्दिक अनुवाद के कारण ‘खड़ी बोली’ कहा जाता है, पीछे छूट गयी है और फिल्मी हिन्दी प्रचलित हो गयी है या हो रही है।
लेकिन ब्लॉग लेखन में यह बात नहीं है। हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाले लोग प्रायः हिन्दी के अच्छे ज्ञाता होते हैं और गम्भीरता से लेखन करते हैं। इसलिए ब्लॉग लेखन के कारण भाषा में विकृति आने का कोई भय नहीं है, भले ही उसमें अंग्रेजी, उर्दू आदि भाषाओं के प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। आगे चलकर इसका प्रभाव सम्पूर्ण हिन्दी भाषा और फिल्मों पर भी अवश्य पड़ेगा।
हिन्दी ब्लॉग लेखन के साथ सबसे अधिक सकारात्मक बात यह है कि इसे दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स जैसे प्रतिष्ठित समाचार पत्रों द्वारा भी प्रोत्साहन दिया जाता है। इसलिए हिन्दी में लिखे गये ब्लॉगों पर प्रशासन और राजनीतिज्ञों सहित सबका ध्यान जाना स्वाभाविक है और उनका प्रभाव भी स्पष्ट दिखायी दे रहा है। हिन्दी ब्लॉगों में कई बार गम्भीर विषयों पर गहरा चिन्तन और विचार-विमर्श किया जाता है, जो एक बहुत सकारात्मक बात है। इससे हिन्दी भाषा का सम्मान निश्चय ही बढ़ रहा है और बढ़ेगा।
जहाँ तक बाजार की बात है, अन्य व्यवसायों की तरह पत्रकारिता भी एक व्यवसाय है, हालांकि शुद्ध ब्लॉग लेखन अभी तक व्यवसाय नहीं बन पाया है। इसलिए यदि हिन्दी ब्लॉग लेखन पर बाजार का साया पड़ता है, तो वह एक स्वाभाविक बात है। इससे हिन्दी का महत्व घटेगा नहीं बल्कि कुछ हद तक बढ़ेगा ही। यदि ब्लॉग लिखने और पढ़ने वालों की संख्या बढ़ेगी तो निश्चय ही उन पर विज्ञापन भी आयेंगे। इसका फायदा ब्लॉग लेखकों को भी हो सकता है, जो अभी तक केवल व्यक्तिगत प्रेरणा से और मिशन के रूप में ब्लॉग लिखते हैं और अपने विचारों का प्रसार करते हैं।
इस प्रकार निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि हिन्दी में ब्लॉग लेखन से न केवल हिन्दी भाषा सम्मान बढ़ेगा, बल्कि यह हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में भी सहायक होगा।

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