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नव परिवर्तनों के दौर में हिन्दी ब्लॉगिंग (Contest)

खट्ठा-मीठा
खट्ठा-मीठा
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एक समय था जब इंटरनेट पर अंग्रेजी का ही बोलबाला था। अधिकांश वेबसाइटें अंग्रेजी में ही थीं और अंग्रेजी में ही समाचार आते थे। यदि कोई व्यक्ति किसी समाचार पर अपनी प्रतिक्रिया या टिप्पणी देना चाहता था, तो उसे अंग्रेजी में ही देनी पड़ती थी। फिर हिन्दी के समाचार पत्र भी इंटरनेट पर आने लगे। उनके समाचारों पर भी प्रतिक्रियायें दी जाने लगीं, जो होती तो हिन्दी में थीं, लेकिन अधिकतर रोमन लिपि में लिखी जाती थीं, क्योंकि हर समाचारपत्र का अपना अलग फॉण्ट होता था, जिसमें टाइप करना हर किसी के लिए सम्भव नहीं होता था।
इस परिदृश्य में परिवर्तन तब हुआ, जब यूनीकोड का प्रचलन हुआ। यह एक सर्वमान्य कूट है, जो दुनिया की लगभग सभी भाषाओं की लिपियों को निरूपित करने में समर्थ है। देवनागरी लिपि भी उनमें से एक है। शीघ्र ही लगभग सभी हिन्दी समाचार पत्रों ने इस कोड को अपना लिया। इसके साथ ही पाठकों को अपनी टिप्पणियाँ हिन्दी में लिखना भी सरल हो गया। हालांकि यूनीकोड में सीधे हिन्दी टाइप करना आज भी सम्भव नहीं है, लेकिन फोनेटिक कीबोर्ड का उपयोग करके उसमें हिन्दी टाइप की जा सकती है, क्योंकि उससे जुड़ा हुआ साॅफ्टवेयर रोमन लिपि की हिन्दी को तत्काल यूनीकोड की हिन्दी में बदल देता है।
यह सुविधा उपलब्ध होते ही हिन्दी समाचारपत्रों ने हिन्दी में ब्लॉग लिखने की सुविधा देना प्रारम्भ कर दिया, जो पहले केवल अंग्रेजी अखबारों का एकाधिकार था। सबसे पहले नवभारत टाइम्स ने इसकी शुरूआत की और फिर दैनिक जागरण ने इसको आगे बढ़ाकर नयी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। आज इन दोनों के अलावा अनेक समाचार पत्र और वेबसाइटें हिन्दी ब्लॉगिंग की सुविधा उपलब्ध करा रही हैं। अब तो ऐसे सॉफ्टवेयर भी आसानी से उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से हम साधारण रेमिंगटन टाइपराइटर जैसे कीबोर्ड पर कृति देव जैसे हिन्दी फॉण्ट में सीधे टाइप करके उस सामग्री को पलक झपकते यूनीकोड में बदल सकते हैं और यूनीकोड से कृति देव में बदल सकते हैं। इस सुविधा के कारण हिन्दी में कुछ भी लिखना बहुत ही सरल हो गया है।
हिन्दी में ब्लॉग लेखन की सर्वसुलभता के कारण आज हिन्दी ब्लॉग विचारों के प्रकटीकरण और आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बन गये हैं। समाचारपत्रों के साधारण पाठक भी, जिनके पास इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, अपना हिन्दी ब्लॉग बनाने लगे हैं और अपने विचार प्रकट कर रहे हैं। हिन्दी के रचनाकार अपनी रचनाओं को अधिक सरलता से अपने पाठकों के सम्मुख ला रहे हैं। पहले किसी कवि या लेखक को अपनी रचना के प्रसार के लिए पत्र-पत्रिकाओं का मुँह जोहना पड़ता था, अब उसकी आवश्यकता नहीं रही।
कई लेखकों ने तो अपने सबल लेखन के द्वारा हजारों पाठकों को अपने साथ जोड़ लिया है। वे अपने पाठकों से टिप्पणियों के माध्यम से लगातार संवाद बनाये रखते हैं और साहित्य तथा राजनीति को अपने तरीके से प्रभावित करने में समर्थ हो गये हैं। सोशल मीडिया के सहयोग से इस प्रभाव में और अधिक वृद्धि होती है।
लेकिन हिन्दी ब्लॉगिंग में अभी एक कमी यह है कि इससे ब्लॉग लेखक को कोई आर्थिक लाभ नहीं होता। यह अवश्य है कि कुछ समाचार पत्रों ने कुछ लेखकों को अपने संबद्ध लेखक के रूप में नियुक्त किया है और उनको कुछ मानदेय भी दिया जाता है, लेकिन ऐसे ब्लॉगरों की संख्या उँगलियों पर ही गिने जाने लायक है। अधिकांश ब्लॉगर तो अपना समय और धन लगाकर ही ब्लॉग लिखते हैं, जिसके बदले में उन्हें कोई आय नहीं होती। भविष्य में यह परिदृश्य अवश्य बदलेगा, इसकी पूरी आशा है।
कोई आर्थिक लाभ न होने पर भी हिन्दी ब्लॉग लेखन का महत्व और प्रसार लगातार बढ़ता जा रहा है, क्योंकि ये जनसाधारण की भाषा में विचारों का प्रसार करके जनमत को जागृत करने और अपनी ही भाषा में परस्पर विचार-विमर्श करने का सशक्त माध्यम हैं। दैनिक जागरण और नवभारत टाइम्स जैसे समाचार पत्र नवीन ब्लॉगरों को लगातार प्रोत्साहित करते हैं यह एक शुभ लक्षण है। इसी कारण भारत में हिन्दी ब्लॉग लेखन ने अंग्रेजी भाषा के ब्लॉग लेखन को कोसों पीछे छोड़ दिया है और यह अन्तर लगातार बढ़ता जा रहा है।
हिन्दी ब्लॉग लेखन आज समय की माँग है। साक्षरता के प्रसार, समाचारपत्रों एवं समाचार चैनलों के व्यापक होने और जनसाधारण में जागरूकता बढ़ने के कारण हिन्दी ब्लॉग के पाठकों और लेखकों की संख्या बढ़ रही है। इसका ज्ञान अच्छे लेखों के पाठकों की संख्या और उन पर आने वाली टिप्पणियों की संख्या से चलता है। कई लेखों पर तो टिप्पणियों की संख्या सौ को भी पार कर जाती है, जो ब्लॉग की लोकप्रियता का प्रमाण है। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि हिन्दी ब्लॉग लेखन का भविष्य बहुत उज्ज्वल है।

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