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शिक्षा का शर्मनाक स्तर

खट्ठा-मीठा
खट्ठा-मीठा
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अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में आयोजित अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) के परिणाम आँखें खोल देने वाले हैं। यह परीक्षा अध्यापकों के चयन हेतु आयोजित की गयी थी और उत्तीर्ण होने वाले उम्मीदवारों को सरकारी विद्यालयों में शिक्षक के रूप में नियुक्त किया जाएगा। इस परीक्षा में शामिल होने वाले लगभग सभी उम्मीदवार स्नातक थे और अधिकांश तो स्नातकोत्तर भी थे। कई तो बी.एड. और एम.एड. तक कर चुके थे। परीक्षा में जो प्रश्न पूछे गये थे वे अधिकांश हाईस्कूल स्तर के और कुछ इंटरमीडियेट स्तर के थे। कहने का तात्पर्य है कि इंटरमीडियेट से ऊपर के स्तर का कोइ्र्र प्रश्न नहीं पूछा गया था। उत्तीर्ण होने के लिए 50 प्रतिशत अंक लाना आवश्यक था।

जब इस परीक्षा के परिणाम आये तो ज्ञात हुआ कि केवल 6 दशमलव कुछ प्रतिशत परीक्षार्थी ही उत्तीर्ण हो सके हैं। जिस परीक्षा में केवल इंटरमीडियेट तक के प्रश्न पूछे गये हों, उसमें ऐसे परिणाम स्तब्ध करने वाले हैं। इससे हमारी शिक्षा व्यवस्था के खोखलेपन का पता चलता है। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारे नौनिहाल विश्वविद्यालयों से जो डिग्रियां लेकर निकल रहे हैं उसका वास्तव में कोई मूल्य नहीं है और वह कागज के टुकडे से अधिक महत्व नहीं रखतीं। इसी कारण कोई भी कम्पनी किसी को नौकरी देने के लिए अपने ही अनुसार परीक्षा लेती है और डिग्रियों पर बिल्कुल विश्वास नहीं करती।

इस परिणाम से यह भी सिद्ध होता है कि प्रति वर्ष लाखों की संख्या में हाईस्कूल और इंटरमीडियेट में उत्तीर्ण होने वाले अधिकांश विद्यार्थी वास्तव में किसी योग्य नहीं हैं और उनके 90 या अधिक प्रतिशत अंकों का कोई महत्व नहीं है। उत्तर प्रदेश में माध्यमिक शिक्षा परिषद की परीक्षायें नकल के लिए बदनाम हैं। यहाँ हजारों ऐसे विद्यालय चल रहे हैं जिनका एक मात्र कार्य केवल परीक्षार्थियों का पंजीकरण करके उनको नकल करने की सुविधा उपलब्ध कराना और किसी भी तरह उत्तीर्ण कराना है। ऐसी हालत में अयोग्य उम्मीदवारों की भीड़ इकट्ठी नहीं होगी तो क्या होगा?

इसका सीधा सा अर्थ यह भी है कि हमारे विद्यालयों में अध्यापक विद्यार्थियों को योग्य बनाने में कोई रुचि नहीं लेते और पढाने की खानापूरी करके चले जाते हैं। इसी कारण जिन विद्यार्थियों के माता-पिता आर्थिक रूप से सक्षम हैं, वे विद्यालयों की पढाई पर विश्वास नहीं करते और अपने बच्चों को ट्यूशन तथा कोचिंग भेजना ज्यादा पसन्द करते हैं। यह हाल सरकारी विद्यालयों का ही नहीं, बल्कि ऊँची फीस वसूलने वाले प्राइवेट शिक्षा संस्थानों का भी है।

वैसे कोचिंग सेंटरों का स्तर भी कोई बहुत अच्छा नहीं है। इस परीक्षा में जो 93 प्रतिशत से अधिक उम्मीदवार असफल हुए हैं उनमें से बहुत से कोचिंग संस्थानों में भी जाते होंगे। फिर भी वे इंटरमीडियेट स्तर तक की परीक्षा भी उत्तीर्ण नहीं कर पाये, यह बेहद शर्मनाक है। इससे सिद्ध होता है कि वे वास्तव में अयोग्य हैं। अगर ऐसे अयोग्य लोग शिक्षक बनेंगे, तो आने वाली पीढी के विद्यार्थी योग्य कैसे होंगे? अभी भी सत्ता में जो लोग हैं उनकी अयोग्यता का कुपरिणाम हम भुगत रहे हैं। पता नहीं और कब तक भुगतना पडेगा।

वास्तव में हमारी पूरी शिक्षा प्रणाली ही बीमार और निष्प्रभावी है। इसमें आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकता है। यदि हमें देश को ऊँचाइयों तक ले जाना है तो हमें योग्य नागरिकों के विकास पर पूरा ध्यान देना चाहिए। अन्यथा इस समाज और देश को अयोग्य हाथों में जाने और नष्ट होने से कोई नहीं रोक सकता।

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