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मिड डे मील योजना में सुधार की आवश्यकता

खट्ठा-मीठा
खट्ठा-मीठा
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आये दिन देश भर में मिड डे मील योजना में घोटालों, लापरवाही, बीमारियों और मौतों के समाचार आते रहते हैं। इससे एक बात तो यह सिद्ध होती है कि इस योजना को लागू करते समय इसकी व्यावहारिकता के पहलू पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया और वोटों की खातिर इसे अधकचरे रूप में ही लागू कर दिया गया, जिसका कुपरिणाम देश को अपने नौनिहालों की अकाल मृत्यु के रूप में भुगतना पड़ रहा है। यदि तत्काल ही इस योजना में सुधार नहीं किया गया, तो परिणाम इससे भी अधिक भयावह हो सकते हैं।

सबसे पहले तो इस योजना की जिम्मेदारी स्कूलों पर डालना गलत है। अध्यापकों का मुख्य कार्य छात्रों को पढ़ाना है न कि उनके भोजन की व्यवस्था करना। विद्यालयों में केवल एक पार्ट-टाइम कामचलाऊ रसोइया नियुक्त करने से इस योजना को सफलतापूर्वक लागू नहीं किया जा सकता।

दूसरी बात इस योजना के लिए प्रति छात्र जितना धन स्वीकार किया गया है, जो कई जगह केवल 2 या 3 रुपये प्रतिदिन है, वह उनको एक समय का भरपेट भोजन देने के लिए पर्याप्त नहीं है। पौष्टिकता की तो बात करना ही बेकार है, क्योंकि विद्यालयों का उद्देश्य किसी भी तरह इस फालतू जिम्मेदारी को निबटाना मात्र होता है, न कि छात्रों को भोजन उपलब्ध कराना। इसलिए इस योजना का असफल होना अवश्यंभावी था।

मेरी दृष्टि में इस योजना में थोड़ा सा परिवर्तन करके सफलतापूर्वक लागू किया जा सकता है। अगर हम पके हुए भोजन के बजाय भिगोये हुए और अंकुरित किये हुए अन्न जैसे चने, गेंहूँ, मूँग आदि बच्चों को उपलब्ध करायें, तो इससे एक ओर तो भोजन की गुणवत्ता की समस्या खत्म हो जायेगी, दूसरी ओर बच्चों को पौष्टिक और सुपाच्य खुराक भी मिलेगी। बीच-बीच में उस अंकुरित या भिगोये गये अन्न को छौंका जा सकता है, ताकि बच्चों को स्वादिष्ट लगे और विविधता बनी रहे। उनमें साधारण नमक के अलावा मौसम और उपलब्धता के अनुसार गाजर, मूली, टमाटर, प्याज, ककड़ी, खीरा आदि के टुकड़े डालकर इसको अधिक स्वादिष्ट और अधिक पौष्टिक भी बनाया जा सकता है।

यह भोजन पकाये हुए भोजन की तुलना में काफी सस्ता और पौष्टिक भी होगा। यदि मात्र 25 ग्राम चने, 10 ग्राम मूँग और 10 ग्राम गेंहूँ भिगोये जायें, तो एक बच्चे के एक समय के भोजन के लिए पर्याप्त मात्रा में अंकुरित अन्न उपलब्ध हो जाएगा। इसका मूल्य वर्तमान बाजार भाव 40 रुपये किलो चने, 15 रुपये किलो गेंहूँ और 80 रुपये किलो मूँग के हिसाब से केवल 2 रुपये प्रति छात्र प्रति दिन होगा। इसमें अन्य विविध खर्चे जोड़ लिये जायें, तो केवल 2 रुपये 50 पैसे प्रति छात्र प्रति दिन पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध कराया जा सकता है।

इस प्रकार के भोजन में न केवल पकाने की समस्या कम होगी, बल्कि भोजन के जहरीले होने का भी कोई प्रश्न नहीं रहेगा। इस भोजन को परोसने के लिए बर्तनों का भी झंझट नहीं है, क्योंकि केवल पत्तों के दोने में दिया जा सकता है। एक बार का भोजन तैयार करने के लिए केवल एक बड़ा भगौना पर्याप्त है। दो रात पहले अन्न को भिगोया जा सकता है और उसके 12 घंटे बाद पानी निकालकर ढककर रखा जा सकता है, जिससे 36 घंटे में अंकुर निकल आयेंगे। इस प्रकार इसको तैयार होने में 48 घंटे लगेंगे। एक विद्यालय में छात्रों की संख्या के अनुसार पर्याप्त आकार के केवल दो भगौने आवश्यक होंगे।

पुराने जमाने के लोग बताते हैं कि पहले उनके स्कूलों में भिगोये हुए चने बँटवाये जाते थे। जनता पार्टी की सरकार के दिनों में जब स्व. श्री राजनारायण स्वास्थ्य मंत्री बने थे, तो उन्होंने स्कूलों में भिगोये हुए चने बँटवाने की बात की थी। वे यह योजना क्यों नहीं लागू कर पाये, इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन इसे अब लागू करके अपने नौनिहालों के भोजन और पौष्टिकता की समस्या को बहुत हद तक कम किया जा सकता है।

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