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मध्यकालीन इतिहास की धुँधली तस्वीर

खट्ठा-मीठा
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किसी गौरवशाली देश का इतिहास भी गौरवशाली होता है। यदि उस देश की नयी पीढ़ी को उस गौरव का बोध कराने की आवश्यकता है, तो उसे उसके इतिहास का ज्ञान कराना चाहिए। प्राचीन काल में इतिहास का ज्ञान प्रत्येक शिक्षित व्यक्ति को कराया जाता था। आज भी इतिहास एक प्रमुख विषय के रूप में स्कूली विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है। लेकिन खेद इस बात का है कि हमने अपने गौरवशाली इतिहास को इस प्रकार विकृत कर दिया है कि उसकी असली तस्वीर धुँधली हो गयी है और नकली तस्वीर चमक रही है।

भारतीय इतिहास के साथ इस खिलवाड़ के मुख्य दोषी वे वामपंथी इतिहासकार हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद नेहरू की सहमति से प्राचीन हिन्दू गौरव को उजागिर करने वाले इतिहास को या तो काला कर दिया या धुँधला कर दिया और इस गौरव को कम करने वाले इतिहास-खंडों को प्रमुखता से प्रचारित किया, जो उनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता के खाँचे में फिट बैठते थे। ये तथाकथित इतिहासकार अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की उपज थे, जिन्होंने नूरुल हसन और इरफान हबीब की अगुआई में इस प्रकार इतिहास को विकृत किया।

इनकी एकांगी इतिहास दृष्टि इतनी अधिक मूर्खतापूर्ण थी कि वे आज तक महावीर, बुद्ध, अशोक, चन्द्रगुप्त, चाणक्य आदि के काल का सही-सही निर्धारण नहीं कर सके हैं। इसीकारण लगभग 1500 वर्षों का लम्बा कालखंड अंधकारपूर्ण काल कहा जाता है, क्योंकि इस अवधि में वास्तव में क्या हुआ और देश का इतिहास क्या था, उसका कोई पुष्ट प्रमाण कम से कम सरकारी इतिहासकारों के पास उपलब्ध नहीं है। इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि अलाउद्दीन खिलजी और बख्तियार खिलजी ने अपनी धर्मांधता के कारण दोनों प्रमुख पुस्तकालय जला डाले थे। लेकिन बिडम्बना तो यह है कि भारत के इतिहास के बारे में जो अन्य देशीय संदर्भ एकत्र हो सकते थे, उनको भी एकत्र करने का ईमानदार प्रयास नहीं किया गया। इसकारण मध्यकालीन भारत का पूरा इतिहास अभी भी उपलब्ध नहीं है।

भारतीय इतिहास कांग्रेस पर लम्बे समय तक इनका कब्जा रहा, जिसके कारण इनके द्वारा लिखा या गढ़ा गया अधूरा और भ्रामक इतिहास ही आधिकारिक तौर पर भारत की नयी पीढ़ी को पढ़ाया जाता रहा। वे देश के नौनिहालों को यह झूठा ज्ञान दिलाने में सफल रहे कि भारत का सारा इतिहास केवल पराजयों और गुलामी का इतिहास है और यह कि भारत का सबसे अच्छा समय केवल तब था जब देश पर मुगल बादशाहों का शासन था। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर ही नहीं नये ‘तथ्यों’ को गढ़कर भी वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि भारत में जो भी गौरवशाली है वह मुगल बादशाहों द्वारा दिया गया है और उनके विरुद्ध संघर्ष करने वाले महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि पथभ्रष्ट थे।

अब जबकि भारतीय इतिहास कांग्रेस से इनका एकाधिकार समाप्त हो गया है और छिपाये हुए ऐतिहासिक तथ्य सामने आ रहे हैं, यह स्पष्ट होता जा रहा है कि भारत का मध्यकालीन इतिहास कुछ अपवादों को छोड़कर प्राचीन इतिहास की तरह ही गौरवशाली था और जिसे तथाकथित गुलामी का काल कहा जाता है, वह स्वतंत्रता के लिए निरन्तर संघर्ष का काल था।

मैं भारतीय इतिहास के साथ किये गये इस खिलवाड़ को सामने लाने के लिए कुछ विशेष घटनाक्रमों का विवेचन क्रमशः करूँगा, ताकि इतिहास पर पड़ी हुई धूल की पर्तें कुछ साफ हों।

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