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आज के “अमर उजाला” में एक समाचार है जिसने मेरा ध्यान आकर्षित किया है. संक्षेप में समाचार इस प्रकार है-
विगत २५ अप्रैल को राहुल गाँधी भोपाल हवाई अड्डे जा रहे थे. वहां उनको एक अखबार बेचने वाला लड़का मिला, जिसने उनसे अख़बार खरीदने का आग्रह किया. राहुल गाँधी ने अख़बार ले लिया और उसको एक हज़ार का नोट दिया. लड़के ने वह नोट यह कहकर वापस कर दिया कि उसके पास १००० के छुट्टे नहीं हैं. फिर वह अख़बार की कीमत लिये बिना चला गया. वह लड़का कक्षा ५ में पढ़ता है और डाक्टर बनना चाहता है. इस पर कांग्रेसी नेताओं को उस लड़के पर दया आई और उन्होंने लड़के को गोद लेना तय किया है तथा उस लड़के को हर माह १००० रुपये दिए जायेंगे.
यदि यह समाचार सत्य है तो इस पर कई प्रश्न उठते हैं-
१. राहुल गाँधी की जेब में केवल १-१ हज़ार के नोट क्यों रखे हुए थे? उनसे वे क्या खरीदना चाहते थे? क्या वे अपने साथ १०-१० के कुछ नोट नहीं ले जा सकते? हज़ार के नोट वे किसको दिखाना चाहते हैं?
२. अगर राहुल के पास छोटे नोट नहीं थे, तो क्या उनके साथ चलने वाले दूसरे लोगों के पास भी नहीं थे? क्या सभी इतने रईस हैं कि हज़ार से नीचे के नोट लेकर नहीं चलते?
३. राहुल गाँधी को क्या इतना भी पता नहीं कि एक अख़बार केवल ३ या ४ रुपये का आता है? अगर उनको इतना भी मालूम नहीं तो वे किस आधार पर आम जनता की पार्टी होने का दावा करते हैं?
४. क्या राहुल गाँधी इतने बड़े मूर्ख हैं जो यह भी नहीं समझ सकते कि एक मामूली अख़बार बेचने वाले लड़के के पास हज़ार के नोट के छुट्टे नहीं हो सकते? क्या इतना बड़ा मूर्ख प्रधान मंत्री के पद के लायक है?
५. कांग्रेस ने उस लड़के को हर महीने हज़ार रुपये देने का वायदा किया है. मैं नहीं मानता कि कभी ऐसा होगा, क्योंकि कांग्रेस के सारे वायदे झूठे ही होते हैं. लेकिन अगर यह वायदा सही मान लिया जाये, तो इसे कांग्रेस कि दरियादिली कहेंगे या मूर्खता, जो एक मेहनती लड़के को मुफ्तखोरी की आदत डालना चाहती है? क्या इससे अच्छा यह न होता कि वे उसकी स्कूल फीस देने कि व्यवस्था कर देते और उसके पिता को कहीं ऐसा काम दिला देते कि उस लड़के को अख़बार न बेचने पड़ें?
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