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नरेन्द्र मोदी की स्वीकार्यता

खट्ठा-मीठा
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इस समय देश में राजनीतिक परिस्थितियाँ एक विचित्र रूप ले चुकी हैं। एक सरकार पिछले 9 वर्ष से देश का शासन कर रही है और दिन पर दिन अपनी अयोग्यता सिद्ध कर रही है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और कभी भी घोषित हो सकते हैं। दो प्रमुख मोर्चे मैदान में आने की तैयारी कर रहे हैं। इनमें एक है वर्तमान में सत्तारूढ़ यू.पी.ए., जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही है और दूसरा है राजग, जिसका नेतृत्व भाजपा के पास है।
यू.पी.ए. ने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार लगभग घोषित कर दिया है और यह स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ डमी प्रधानमंत्री हैं, जिनको इसलिए कुर्सी पर चिपकाया गया था कि कोई अन्य नेता अपना पक्का दावा न ठोक दे। मनमोहन सिंह के बारे में ऐसी आशंका शुरू से ही नहीं थी, क्योंकि उनका कोई जन आधार ही नहीं है और न उन्होंने कभी कोई चुनाव लड़ा। उनको केवल इसलिए डमी बनाया गया था कि समय आने पर कांग्रेस के ‘युवराज’ के लिए कुर्सी खाली कर दें। प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी की उम्मीदवारी पर यूपीए के अन्दर कोई विरोध भी नहीं है, क्योंकि सभी सहयोगी दलों को मालूम है कि कांग्रेस के सहारे के बिना उनका सत्ता में आना लगभग असम्भव है।
दूसरी ओर, राजग में प्रधानमंत्री पद के लिए अभी तक आम राय नहीं बन पायी है। यों भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता और समर्थक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं और आम जनता भी यही चाहती है। लेकिन भाजपा के कुछ शीर्ष नेता बहुत ही महत्वाकांक्षी हैं। वे यह नहीं चाहते कि कोई व्यापक जनाधार और लोकप्रियता वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री बने। वे समय-समय पर किसी न किसी का नाम उछालते रहते हैं, ताकि मोदी जी को लेकर भ्रम बना रहे। लेकिन अब भ्रम के बादल लगभग छँटने लगे हैं, क्योंकि भाजपा को वैचारिक समर्थन और कर्मठ कार्यकर्ता देने वाले संघ ने मोदी जी के नाम पर लगभग अपनी मोहर लगा दी है।
परन्तु राजग में भाजपा के दो प्रमुख सहयोगी दल जनता दल (यू) तथा शिव सेना अलग-अलग कारणों से नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। इन दोनों के विरोध में एक विचित्र विरोधाभास है। जनता दल (यू) इसलिए विरोध कर रहा है कि उसके अनुसार नरेन्द्र मोदी की छवि मुसलमान-विरोधी की है और शिव सेना इसलिए विरोध में है कि उसके अनुसार नरेन्द्र मोदी की छवि हिन्दू-विरोधी की है। क्या यह अपने आप में एक हास्यास्पद बात नहीं है कि कोई आदमी एक साथ मुसलमान-विरोधी भी हो और हिन्दू-विरोधी भी, फिर भी आम जनता में उसकी स्वीकार्यता सबसे अधिक हो? स्पष्ट है कि मोदी जी न तो मुसलमान-विरोधी हैं और न हिन्दू-विरोधी, बल्कि वे दोनों ही समुदायों के उग्रवाद के विरोधी हैं। उन्होंने अपने भाषणों में स्पष्ट कहा भी है कि उनके लिए देश सबसे पहले है और यही उनकी पंथनिरपेक्षता की एक मात्र कसौटी है।
इतने स्पष्ट दृष्टिकोण के होने के कारण ही मोदी जी को आम जनता में स्वीकार्यता प्राप्त हुई है। वे जहाँ भी भाषण देने जाते हैं अपने प्रखर चिन्तन और ठोस व्यावहारिक दृष्टिकोण से श्रोताओं का मन मोह लेते हैं। वे केवल कहते ही नहीं बल्कि अपने चिन्तन को व्यावहारिक रूप में सत्य सिद्ध करके भी दिखाते हैं। गुजरात की चहुँमुखी प्रगति इसका प्रमाण है, जिसकी प्रशंसा उनके घोर विरोधियों को भी झख मारकर करनी पड़ती हैं। देश-विदेश में गुजरात की प्रगति की चर्चा है और आम भारतीय जनता को यह विश्वास हो गया है कि यदि इस देश को कोई नेता विकास के सही मार्ग पर ले जा सकता है, तो वे सिर्फ नरेन्द्र मोदी हैं।
अब प्रश्न उठता है कि राजग के प्रमुख सहयोगी दलों के मोदी-विरोध का कारण क्या है? यह कारण बिल्कुल स्पष्ट है। वे जानते हैं कि यदि मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा जाता है, तो भाजपा उम्मीदवारों को आम जनता का इतना समर्थन मिलेगा कि उसकी अपनी सीटों की संख्या 200 को भी पार कर सकती है। ऐसा होने पर सहयोगी दलों का महत्व घट जाएगा। इसलिए वे किसी भी कीमत पर भाजपा की सीटों की संख्या अधिक नहीं बढ़ने देना चाहते। लेकिन यह रवैया अपनी नाक कटाकर दूसरों का अपशकुन करने की नीति की तरह ही मूर्खतापूर्ण कहा जाएगा। सहयोगी दल चाहें या न चाहें, आम भारतीय मोदी जी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है और वह देखेगा।

इस समय देश में राजनीतिक परिस्थितियाँ एक विचित्र रूप ले चुकी हैं। एक सरकार पिछले 9 वर्ष से देश का शासन कर रही है और दिन पर दिन अपनी अयोग्यता सिद्ध कर रही है। लोकसभा चुनाव सिर पर हैं और कभी भी घोषित हो सकते हैं। दो प्रमुख मोर्चे मैदान में आने की तैयारी कर रहे हैं। इनमें एक है वर्तमान में सत्तारूढ़ यू.पी.ए., जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही है और दूसरा है राजग, जिसका नेतृत्व भाजपा के पास है।

यू.पी.ए. ने अपना प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार लगभग घोषित कर दिया है और यह स्पष्ट हो गया है कि वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सिर्फ डमी प्रधानमंत्री हैं, जिनको इसलिए कुर्सी पर चिपकाया गया था कि कोई अन्य नेता अपना पक्का दावा न ठोक दे। मनमोहन सिंह के बारे में ऐसी आशंका शुरू से ही नहीं थी, क्योंकि उनका कोई जन आधार ही नहीं है और न उन्होंने कभी कोई चुनाव लड़ा। उनको केवल इसलिए डमी बनाया गया था कि समय आने पर कांग्रेस के ‘युवराज’ के लिए कुर्सी खाली कर दें। प्रधानमंत्री पद के लिए राहुल गाँधी की उम्मीदवारी पर यूपीए के अन्दर कोई विरोध भी नहीं है, क्योंकि सभी सहयोगी दलों को मालूम है कि कांग्रेस के सहारे के बिना उनका सत्ता में आना लगभग असम्भव है।

दूसरी ओर, राजग में प्रधानमंत्री पद के लिए अभी तक आम राय नहीं बन पायी है। यों भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता और समर्थक गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के लिए प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं और आम जनता भी यही चाहती है। लेकिन भाजपा के कुछ शीर्ष नेता बहुत ही महत्वाकांक्षी हैं। वे यह नहीं चाहते कि कोई व्यापक जनाधार और लोकप्रियता वाला व्यक्ति प्रधानमंत्री बने। वे समय-समय पर किसी न किसी का नाम उछालते रहते हैं, ताकि मोदी जी को लेकर भ्रम बना रहे। लेकिन अब भ्रम के बादल लगभग छँटने लगे हैं, क्योंकि भाजपा को वैचारिक समर्थन और कर्मठ कार्यकर्ता देने वाले संघ ने मोदी जी के नाम पर लगभग अपनी मोहर लगा दी है।

परन्तु राजग में भाजपा के दो प्रमुख सहयोगी दल जनता दल (यू) तथा शिव सेना अलग-अलग कारणों से नरेन्द्र मोदी की उम्मीदवारी का विरोध कर रहे हैं। इन दोनों के विरोध में एक विचित्र विरोधाभास है। जनता दल (यू) इसलिए विरोध कर रहा है कि उसके अनुसार नरेन्द्र मोदी की छवि मुसलमान-विरोधी की है और शिव सेना इसलिए विरोध में है कि उसके अनुसार नरेन्द्र मोदी की छवि हिन्दू-विरोधी की है। क्या यह अपने आप में एक हास्यास्पद बात नहीं है कि कोई आदमी एक साथ मुसलमान-विरोधी भी हो और हिन्दू-विरोधी भी, फिर भी आम जनता में उसकी स्वीकार्यता सबसे अधिक हो? स्पष्ट है कि मोदी जी न तो मुसलमान-विरोधी हैं और न हिन्दू-विरोधी, बल्कि वे दोनों ही समुदायों के उग्रवाद के विरोधी हैं। उन्होंने अपने भाषणों में स्पष्ट कहा भी है कि उनके लिए देश सबसे पहले है और यही उनकी पंथनिरपेक्षता की एक मात्र कसौटी है।

इतने स्पष्ट दृष्टिकोण के होने के कारण ही मोदी जी को आम जनता में स्वीकार्यता प्राप्त हुई है। वे जहाँ भी भाषण देने जाते हैं अपने प्रखर चिन्तन और ठोस व्यावहारिक दृष्टिकोण से श्रोताओं का मन मोह लेते हैं। वे केवल कहते ही नहीं बल्कि अपने चिन्तन को व्यावहारिक रूप में सत्य सिद्ध करके भी दिखाते हैं। गुजरात की चहुँमुखी प्रगति इसका प्रमाण है, जिसकी प्रशंसा उनके घोर विरोधियों को भी झख मारकर करनी पड़ती हैं। देश-विदेश में गुजरात की प्रगति की चर्चा है और आम भारतीय जनता को यह विश्वास हो गया है कि यदि इस देश को कोई नेता विकास के सही मार्ग पर ले जा सकता है, तो वे सिर्फ नरेन्द्र मोदी हैं।

अब प्रश्न उठता है कि राजग के प्रमुख सहयोगी दलों के मोदी-विरोध का कारण क्या है? यह कारण बिल्कुल स्पष्ट है। वे जानते हैं कि यदि मोदी जी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा जाता है, तो भाजपा उम्मीदवारों को आम जनता का इतना समर्थन मिलेगा कि उसकी अपनी सीटों की संख्या 200 को भी पार कर सकती है। ऐसा होने पर सहयोगी दलों का महत्व घट जाएगा। इसलिए वे किसी भी कीमत पर भाजपा की सीटों की संख्या अधिक नहीं बढ़ने देना चाहते। लेकिन यह रवैया अपनी नाक कटाकर दूसरों का अपशकुन करने की नीति की तरह ही मूर्खतापूर्ण कहा जाएगा। सहयोगी दल चाहें या न चाहें, आम भारतीय मोदी जी को अगले प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहता है और वह देखेगा।

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